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क्या है अमित शाह का वो प्लान... जो घुसपैठियों के दिल में डर... और नेताओं में खलबली मचा रहा है?

Tuesday, October 14 | October 14, 2025 WIB Last Updated 2025-10-15T06:58:40Z

 क्या है अमित शाह का वो प्लान... जो घुसपैठियों के दिल में डर... और नेताओं में खलबली मचा रहा है?”  कौन है जो हिन्दुस्तान में रोहंग्यिया.और घुसपैठियों को पनाह दे रहा है ? और कैसे देश में मुस्लिम आबादी   9.8% से बढ़कर  24.6% तक पहुच गई ? क्या ये सिर्फ महज  एक आकडा है.. या  किसी बड़ी साजिश की संख्या जो भारत को गजवाए हिन्द की वोर ले जा रही है .....................................................................



15 अगस्त 1947 — -को जब भारत आज़ाद हुआ, तो अवैध घुसपैठ देश की सबसे बड़ी चुनौती थी.।  देशभर में बांग्लादेशी और पाकिस्तानी मुसलमानों की घुसपैठ हो रही थी — असम से लेकर बंगाल तक। और बिहार से लेकर यूपी तक न सिर्फ भारत की डेमोग्राफी तेजी बदली , बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी गंभीर सवाल खड़े हो गए । लेकिन वोट बैंक की राजनीति और सत्ता की चाहत ने इसे लगातार बढ़ने का मौका दिया।....


1947 से लेकर 2025 तक — देश ने 78 साल का इतिहास देखा ,जिसमे 54 साल अकेले कांग्रेस ने इस देश में राज किया। नेहरू,से लेकर  इंदिरा गाँधी तक , राजीव, से लेकर मनमोहन सिंह तक और सबका मकसद एक ही था वोट के लिए विभाजन,और सत्ता के लिए तुस्टीकरण..और इसी तुस्टीकरण की पोल्काटिक्स ..ने हिन्दुस्तान में एक नयी जमात को जन्म दिया ..जिसका नाम था घुसपैठिया समज..जो न सिर्फ देश के लिए नासूर बना बल्कि यही नासूर  हिन्दुओं की आबादी को निगलता रहा है..हालत ऐसे हो गए की कुछ जगहों पर या तो हिन्दू पलायान कर गए ..या उन्हें ऐसा कंरने के लिए मजबूर किया गया  


अवैध घुसपैठ” — वो खामोश साज़िश है जो देश के नक्शे से लेकर जनसंख्या के अनुपात तक को बदल रही है। जो कभी इंसानी मदद के नाम पर शुरू हुई थी, अब वही ‘गज़वा-ए-हिंद’ की ज़मीन तैयार कर रही है। सीमा से अंदर आने वाला हर बांग्लादेशी या रोहिंग्या सिर्फ़ एक “घुसपैठिया” नहीं है  — बल्कि एक “डेमोग्राफिक हथियार” है, जो धीरे-धीरे देश की पहचान को बदलने की कोशिश में है।  असम से लेकर बंगाल तक —घुसपैठ ने चुनाव बदले, और चुनावों की  नीतियाँ भी ।  लेकिन सवाल इस बात का है —की आख़िर किसने इस आग को हवा दी? कौन था जिसने  घुसपैठियों  के नाम पर“वोट बैंक” की राजनीति की? और अमित शाह की ऐसी कौन सी प्लानिंग है जिसने .घुसपैठियों के बीच हलचल बढ़ा दी है ... चलिए समझते है .

 


वैसे तो तुस्टीकरण की पोल्टिक्स आजादी ..और बिभाजन के साथ ही शुरू हो गयी थी.. जब हिंदूओं को सेक्युलर, और मुस्लिमों को अल्पसंख्यक बना दिया गया 

कश्मीरी मुसलमानों के लिए तो आर्टिकल 370 लागू  कर दिया गया  — जबकि उसी कश्मीर के लाखों कश्मीरी पंडितों को पलायान और हिंसा का शिकार होना पडा ये तो बस शुरुवात थी ... तुस्टीकरण की असली कहानी तो ..1966 से 1977, और 1980 से 1984 के बीच लिखी गयी ... जब इंदिरा गाँधी ने Minority Commission की स्थापना की  और राजीव गाँधी  ने Muslim Women Act, की.. ....  राजीव गांधी ने शाह बानो केस में न्यायपालिका के ऊपर “मौलवियों” को रख दिया। मनमोहन सिंह ने तो संसद में कहा था —देश के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है।” यानि  कांग्रेस के लिए “राष्ट्र” नहीं, तुस्टीकरण ” ही वोट की गारंटी थी। और यही गारंटी .. घुसपैठियों के लिए अवसर बन गयी .... 


 इसे ऐसे समझिये की 1951 में भारत की जो मुस्लिम आबादी लगभग 9.8% थी।  2011 आते-आते वही मुस्लिम आबादी 14.2% हो गयी - यानी हर सातवाँ भारतीय अब मुस्लिम था.. वैसे तो ये औसत आँकड़ा है… लेकिन असल तस्वीर राज्यों के स्तर पर और भी चौंकाने वाली है — इसे ऐसे समझिये की 1951 में असंम की जो मुस्लिम आबादी 22%,अब बढ़कर 34% से ज़्यादा हो चुकी है। धुबरी.. करिमगंज.. और बारपेटा जैसे ज़िलों में तो 70% तक पहुँच चुकी है।

सिर्फ असाम ही नहीं .. पश्चिम बंगाल: में 19%, से बढ़कर  27.01%।  केरल: में 17%, से बढ़कर  26.6%।  उत्तर प्रदेश: 13.4%, अब 19.26%।  हो चुकी है 


यानी सिर्फ़ सत्तर सालों में भारत के कई हिस्सों की डेमोग्राफिक पहचान पूरी तरह बदल गई है —जहाँ हिन्दू कभी “बहुसंख्यक” था, अब वहाँ अल्पसंख्यक” हो चूका है.... .लेकिन परेशानी इस बात की नहीं  है की मुस्लिमो की संख्या बढ़ गयी है .. परेशानी तो इस बात की है की  इस तेजी में सबसे बड़ा योगदान है — बांग्लादेश से आए रोहिंग्या  घुसपैठियों का है ..जो न सिर्फ देश की सुरक्षा के लिए खतरा है  बल्कि देश के असली मुस्लिमो  का भी हक़ छीन रहे है ..


यह वही साज़िश है जिसे आज कई कट्टर इस्लामी संगठन “गज़वा-ए-हिंद” का नाम दे रहे हैं —यानि भारत पर जनसंख्या और वोट की ताक़त से कब्ज़ा करने की योजना। सीमा से आने वाला हर घुसपैठिया सिर्फ़ एक “शरणार्थी” नहीं, बल्कि डेमोग्राफिक हथियार है — जो भारत के नक्शे को धीरे-धीरे बदलने की कोशिश में है। लेकिन अब भारत सरकार इस पर फुल स्टॉप लगने  की पूरी प्लानिंग कर चुकी है .... और इसका असर भी दिखने लगा है ....  अमित शाह कई बार कह चुके है की भारत कोई  धर्मशाला नहीं है जहाँ कोई भी अवैध रूप से आकर बस जाए। घुसपैठिए दीमक की तरह हैं, जो हमारे देश को अंदर से खा रहे हैं। हम इन्हें पहचानेंगे और एक-एक को बाहर निकालेंगे।”  और उसी का हिसा है  अमित शाह के डिटेक्ट… डिलीट… डिपोर्ट। प्लान . (डिटेक्ट): मतलब  देश में रह रहे अवैध घुसपैठियों की पहचान की जाएगी। डिलीट):मतलब  मतदाता सूची और सरकारी दस्तावेज़ों से उनका नाम हटाया जाएगा  और डिपोर्ट मतलब उन्हें वापस उनके देश भेजा जाएगा —  



अमित शाह का ये मिशन —सिर्फ़ सुरक्षा ऑपरेशन नहीं, बल्कि सियासत से लेकर  घुसपैठियों तक हलचल बढ़ा चूका है ...क्योंकि जहाँ सरकार घुसपैठियों को “डिटेक्ट” कर रही है, वहीं विपक्ष “वोट बैंक” के खोने से डर सता रहा है। यानी —👉 घुसपैठियों को डर है, उनकी पहचान उजागर होने का।👉 और सियासत को डर है, अपने वोट बैंक खोने का।  जिसके दम पर सत्ता की सीढियाँ चढ़ते है ?अब सवाल ये नहीं कि घुसपैठिए कौन हैं —सवाल ये है कि कितने हैं… और कब तक रहेंगे? क्योंकि अगर यह डेमोग्राफिक खेल अब नहीं रोका गया, तो एक दिन भारत का नक्शा बदलेगा —और उसके साथ भारत की पहचान भी।

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